दोस्तों हम में से बहुत से लोग मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच कंफ्यूज हो जाते हैं। आप में से ज्यादातर लोग नहीं जानते कि इनके कर्तव्य, वेतन, शक्तियां और सुरक्षा क्या होती है। इसलिए इस ब्लॉग को पूरा पढ़ें और अपने अनुभव साझा करें। तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं मुख्यमंत्री बनाम राज्यपाल…
चीफ़ मिनिस्टर यानी कि मुख्यमंत्री किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश का मुखिया होता है। मुख्यमंत्री को चुनने के लिए चुनाव होते हैं जिन्हें हम विधानसभा चुनाव कहते हैं। वहीं गवर्नर यानी की राज्यपाल हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में केंद्रीय सरकार का एक प्रतिनिधि होता है। जिसे राज्य सरकार की सलाह लेकर राष्ट्रपति चुनते हैं।
राज्यपाल का काम होता है कि वह अपने राज्य में नियम कानून की व्यवस्था बनाए रखें और केंद्र सरकार के कामों को भी राज्य स्तर पर देखें। विधानसभा चुनाव में ⅔ बहुमत पाने वाले पार्टी के प्रतिनिधि को गवर्नर हीं मुख्यमंत्री के तौर पर चुनते हैं। वहीं मुख्यमंत्री का काम होता है कि वह राज्य और राज्य के लोगों के हित में योजना बनाए और उन्हें लागू करें।
किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री बनने के लिए एक व्यक्ति की उम्र कम से कम 25 साल होनी चाहिए और इसके बाद उसे विधानसभा का सदस्य होना भी जरूरी है। ऐसा ना होने पर उसे किसी विधानसभा सीट से चुनाव जीतने और विधानसभा का सदस्य बनने के लिए 6 महीने का समय दिया जाता है। अगर वह ऐसा नहीं कर सका तो वह व्यक्ति मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया जाता है। भारत के सभी राज्यों में मुख्यमंत्री का कार्यकाल 5 साल का होता है। हालांकि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री का कार्यकाल 6 साल का होता है। मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों को शपथ दिलाने का काम उस राज्य के गवर्नर का होता है।
अब बात करते हैं राज्यपाल की, राज्यपाल बनने के लिए एक व्यक्ति की उम्र कम से कम 35 साल होनी चाहिए। वह ना तो लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य हो सकता है और ना हीं विधानसभा का सदस्य। साथ हीं वह सरकार के किसी कार्यालय से कोई भी लाभ प्राप्त नहीं कर सकता। राज्यपाल का कार्यकाल भी 5 साल का होता है और उन्हें शपथ दिलाने की ज़िम्मेदारी सम्बंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की होती है।
मुख्यमंत्री | राज्यपाल | |
न्यूनतम आयु | 25 साल | 35 साल |
कार्यकाल | 5 साल | 5 साल |
शपथ दिलाने वाले | राज्य के राज्यपाल | उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश |
चलिए आप बात करते हैं शक्तियों की,
जैसा कि आपको पता हीं है कि मुख्यमंत्री राज्य का मुखिया होता है, और उसे कैबिनेट के मंत्रियों को चुनने और हटाने का अधिकार है। हालांकि उसे इसके लिए राज्यपाल की परमिशन लेनी होती है। उसका काम है कि वह राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों में तालमेल बनाए रखें और सरकार की योजनाओं को राज्य के लोगों तक पहुंचाएं। राज्यपाल अपने ज्यादातर फैसलों को मुख्य मंत्री से बातचीत और सलाह करने के बाद हीं लेते हैं। लेकिन राज्यपाल की अपनी भी बहुत सी शक्तियां होती है। राज्यपाल हीं मुख्यमंत्री को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है और उच्च न्यायालय के न्यायधीश को चुनता है। विधानसभा में पारित किया हुआ कोई भी बिल तब तक कानून नहीं बन सकता जब तक उस पर राज्यपाल की सहमति ना हो। अगर राजपाल को लगे कि राज्य सरकार नियम कानून के अनुरूप कार्य नहीं कर रही या किसी पार्टी के पास बहुमत नहीं है तो वह विधानसभा को भंग भी कर सकता है। राज्य सरकार को वित्तीय मामलों में भी राज्यपाल से सलाह लेनी होती है। इतना हीं नहीं राजपाल राज्य की बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों का चांसलर यानी कुलाधिपति भी होता है।
एक मुख्यमंत्री तभी तक अपने पद पर रह सकता है, जब तक विधानसभा में उसे बहुमत हासिल हो। अगर विधानसभा में वह ⅔ बहुमत बना कर नहीं रख सका तो उसे अपने कार्यकाल के खत्म होने से पहले हीं इस्तीफ़ा देना होगा। वहीं राज्यपाल को अपने कार्यकाल के पहले हटाने या दूसरे राज्य में स्थानांतरित करने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति को हीं होता है। राष्ट्रपति इसके लिए प्रधानमंत्री की सलाह भी ले सकते हैं। शायद आपको पता नहीं होगा कि एक गवर्नर यानी कि राज्यपाल को उसके कार्यकाल के दौरान पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती और ना हीं उससे किसी मामले में कोई पूछताछ की जा सकती है।
दोस्तों एक मुख्यमंत्री कितनी भी बार इस पद पर चुना जा सकता है। सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग 24 साल और 165 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे थे। और 5 बार इस पद पर चुने गए थे। वह आजाद भारत के सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले व्यक्ति हैं इस सूची में दूसरे नंबर पर ज्योति बासु हैं जो 23 साल 137 दिनों तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। क्या आपको पता है? 1998 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जगदंबिका पाल सिर्फ 1 दिन तक हीं मुख्यमंत्री रह सके और इसी के साथ वो सबसे कम समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले व्यक्ति हैं। वहीं सबसे लंबे समय तक राज्यपाल के पद पर रहने का रिकॉर्ड एम.एम. जैकोब के नाम है, जो 11 साल 293 दिनों तक मेघालय के राज्यपाल रहे थे। इसमें से कुछ समय उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर भी बिताया था।


मुख्यमंत्री | राज्यपाल | |
अधिकतम कार्यकाल | पवन कुमार चामलिंग | एम.एम. जैकोब |
अधिकतम कार्यावधि | 24 साल और 165 दिन | 1 साल 293 दिन |
न्यूनतम कार्यकाल | जगदंबिका पाल | — |
न्यूनतम कार्यावधि | 1 दिन | — |
अब बात करते हैं तनख्वाह की,

दोस्तों हर राज्य के मुख्यमंत्री की सैलरी यानी की तनख्वाह अलग अलग होती है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री को जहां सबसे ज्यादा हर महीने 4,100,00 रुपये दिए जाते हैं तो वहीं त्रिपुरा के मुख्यमंत्री की सैलरी हर महीने 1,055,00 रुपये के साथ सबसे कम है। क्या आपको पता है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने तनख्वाह के तौर पर सिर्फ 1 रुपये हीं लेती है। भारत में किसी भी राज्य के राज्यपाल को हर महीने 3,500,00 रुपये तनख्वाह के रूप में मिलते हैं।
मुख्यमंत्री | राज्यपाल | |
अधिकतम तनख्वाह | 4,100,00 रुपये प्रति महीने | 3,500,00 रुपये प्रति महीने |
न्यूनतम तनख्वाह | 1 रुपये प्रति महीने | 3,500,00 रुपये प्रति महीने |
राष्ट्रपति भवन के तर्ज पर हर राज्य में राज भवन होता है। जहां पर उस राज्य के राज्यपाल और उनका परिवार रहता है। वहीं अगर हम बात करें मुख्य मंत्रियों के आधिकारिक निवास की तो हर राज्य के मुख्यमंत्री का अपना अलग आधिकारिक निवास होता है। जैसे बिहार के मुख्यमंत्री अन्ने मार्ग में रहते हैं, तेलंगाना के मुख्यमंत्री प्रगति भवन में, कर्नाटका के मुख्यमंत्री अनुग्रह में, और केरला के मुख्यमंत्री क्लिफ हाउस में रहते हैं।
मुख्यमंत्री आबास स्थान | |
बिहार के मुख्यमंत्री | अन्ने मार्ग |
तेलंगाना के मुख्यमंत्री | प्रगति भवन |
कर्नाटका के मुख्यमंत्री | अनुग्रह |
केरला के मुख्यमंत्री | क्लिफ हाउस |
चलिए अंत में बात करते हैं सुरक्षा की,

दोस्तों सभी राज्यों के मुख्य मंत्रियों और राज्यपालों को जेड प्लस सुरक्षा दी जाती है। जिसमें एस.पी.जी. एन.एस.जी. और सी.आर.पी.एफ. के जवान होते हैं।
तो दोस्तों यह था भारत के राज्यों के मुख्य मंत्रियों और राज्यपालों का एक दिलचस्प और ज्ञान भरा तुलना। आशा है, आपको इस ब्लॉग से बहुत कुछ जानने का मौका मिला होगा।